इस सप्ताह मैंने कोई ऐसा पाठ या रचना नहीं लिखी जिसकी चर्चा की जा सके। वजह यह रही कि बरसात के मौसम में विद्युत प्रवाह की समस्या और फिर शादी विवाह में जाने के कारण व्यस्तता रही। ऐसे में कुछ कवितायें लिखी जिनको कोई अधिक हिट नहीं मिल सके। संभवतः पाठक भी ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहे होंगे। ब्लाग जगत में मेरे लिये कोई खास सप्ताह नहीं रहा। वैसे धीरे-धीरे मन अब ऊब रहा है क्योंकि पाठक संख्या में वृद्धि अब भी नहीं हो पा रही। पांच सौ से छह सौ के बीच कुल पाठक मेरे ब्लाग/पत्रिकाओं को देख रहे हैं और यह क्रम करीब छह माह से बना हुआ है। पिछले सप्ताह एक दिन यह आंकड़ा सात सौ के पार पहुंचता लग रहा था पर नहीं हो पाया। शायद 695 तक ही पहुंचा था।
बहरहाल अब उन ब्लाग पर जिन पर पहले अध्यात्म से संबंधित पाठ रखता था- अब वहां बंद कर दिये है-वहां अभी तक अध्यात्म के पाठ अधिक पाठक संख्या लेते नजर आ रहे थे अब हास्य कविताएं और व्यंग्य भी अपने लिये अधिक पाठक जुटाने में लगे हैंं। मेरे दिमाग में कई प्रकार का गंभीर चिंतन है और कुछ अलग से कागज पर भी लिखा हुआ है पर, पर वह बड़े हैं और यहां बड़ा लिखने पर लोग उसकी उपेक्षा कर देते हैं। इसलिये अपनी कहानियां, व्यंग्य और चिंतन अभी भी यहां टाईप नहीं कर रहा। एक बात तय है कि जब तक हाथ से लिखकर यहां टाईप नहीं करूंगा तक अच्छी रचनायें नहीं आयेंगी। इसलिये आम पाठकों की तरफ से भी अब प्रयास होने चाहिये कि लेखक प्रोत्साहित हो सके। इसलिये हर पढ़ने वाले को कमेंट भी देना चाहिये और लेखक द्वारा जब उसके वास्तविक होने की पुष्टि के लिये संदेश किसी भी रूप में भेजा जाये तो उसका जवाब मिले। वरना यह मानकर चलना पड़ता है कि किसी दोस्त ने ही छद्म नाम से यह दिया है।
इस सप्ताह की कुछ रचनायें यहां दे रहा हूं।
दीपक भारतदीप
कुछ गूगल के हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद टूल से भी पूछ लो-व्यंग्य
जो कोई नहीं कर सका वह गूगल का हिंदी अंग्रेजी टूल करा लेगा। वह काम हैं हिंदी के लेखकों से शुद्ध हिंंदी लिखवाने का। दरअसल आजकल मैं अपने वर्डप्रेस के शीर्षक हिंदी में कराने के लिये उसके पास जाता हूं। कई बार अनेक कवितायें भी ले जाता हूं। उसकी वजह यह है कि हिंदी में तो लगातार फ्लाप रहने के बाद सोचता हूं कि शायद मेरे पाठ अंग्रेजों को पसंद आयें। इसके लिये यह जरूरी है कि उनका अंग्रेजी अनुवाद साफ सुथरा होना चाहिये। अब हिट होने के लिये कुछ तो करना ही है। अब देश के अखबार नोटिस नहीं ले रहे तो हो सकता है कि विदेशी अखबारों में चर्चा हो जाये तो फिर यहां हिट होने से कौन रोक सकता है? फिर तो अपने आप लोग आयेंगे। तमाम तरह के साक्षात्कार के लिये प्रयास करेंगे।
इसलिये उस टूल से अनुवाद के बाद उनको मैं पढ़ता हूं पर वह अनेक ऐसे शब्दों को नकार देता है जो दूसरी भाषाओं से लिये गये होते हैं या जबरन दो हिंदी शब्द मिलाकर एक कर लिखे जाते हैं। इसका अनुवाद सही नहीं है पर जितना है वह अंग्रेजी में पढ़ने योग्य हो ही जाता है। उसकी सबसे मांग शुद्ध हिंदी है। उस दिन चिट्ठा चर्चा में एक शब्द आया था जालोपलब्ध। मैंने इसका विरोध करते हुए सुझा दिया जाललब्ध। इस टूल पर प्रमाणीकरण के लिये गया पर उसने दोनों शब्दों को उठाकर फैंक दिया और मैं मासूमों की तरह उनको टूटे कांच की तरह देखता रहा। तब मैंने जाल पर उपलब्ध शब्द प्रयोग किया तब उसने सही शब्द दिया-जैसे शाबाशी दे रहा हो। मतलब वह इसके लिये तैयार नहीं है कि तीन शब्दों को मिलाकर उसक पास अनुवाद के लिये लाया जाये।
इधर बहुत सारे विवाद चल रहे हैं। कोई कहता है कि हिंदी में सरल शब्द ढूंढो और कोई कहता है कि हिंदी में उर्दू शब्दों का प्रयोग बेहिचक हो। कोई कहता हैं कि उर्दू शब्दों में नुक्ता हो। कोई कहता है कि जरूरत नहीं। इन बहसों में हमारे अंतर्जाल लेखक-जिनमें मैं स्वयं भी शामिल हूं-इस बात पर विचार नहीं करते कि कुछ गूगल के हिंदी अग्रेजी टूल से भी तो पूछें कि उसे यह सब स्वीकार है कि नहीं।
आप कहेंगे कि इससे हमें क्या लेना देना? भई, हिंदी में भी अंतर्जाल पर लिखकर हिट होने की बात तो अब भूल जाओ। भाई लोग, अब बाहर के लेखकों के लिये क्लर्क का काम भी करने लगे हैं। उनकी रचनायें यहां लिख कर ला रहे हैं और बताते हैं कि उन जैसा लिखो। अब इनमें कई लेखक ऐसे हैं जिनका नाम कोई नहीं जानता पर उनको ऐसे चेले चपाटे मिल गये हैं जो उनकी रचनाओं को अपने मौलिक लेखन क्षमता के अभाव में अपना नाम चलाने के लिये इस अंतर्जाल पर ला रहे हैं। सो ऐसे में एक ही चारा बचता है कि अंतर्जाल पर अंग्रेजी वाले भी हिंदी वालों को पढ़ने लगें और अगर वह प्रसिद्धि मिल जाये तो ही संभव है कि यहां भी हिट मिलने लगें।
मैं यह मजाक में नहीं कह रहा हूं। यह सच है कि भाषा की दीवारें ढह रहीं हैं और ऐसे में अपने लिखे के दम पर ही आगे जाने का मार्ग यही है कि हम इस तरह लिखें कि उसका अनुवाद बहुत अच्छी तरह हो सके। हालांकि मैंने प्रारंभ में कुछ पाठ वहां जाकर देखे पर फिर छोड़ दिया क्योंकि उस समय कुछ अधिक हिट आने लगे थे। अब फिर वेैसी कि वैसी ही हालत हो गयी है और अब सोच रहा हूं कि पुनः गूगल के हिंदी अंग्रजी टूल पर ही जाकर अपने पाठ देखेंे जायें वरना यहां तो पहले से ही अनजान लेखकों को यहां पढ़कर अपना माथा पीटना पड़ेगा। अखबार फिर उन लेखकों और उनको लिखने वाले ब्लाग लेखकों के नाम छापेंगे। अगर अपना नाम कहीं विदेश में चमक जायेगा तो यहां अपने आप हिट मिल जायेंगे। वैसे भी यहां हिंदी वाले अंग्रेजी की वेबसाईटें देखना चाहते है और उनके लिये हिंदी में पढ़ना एक तरह से समय खराब करना है ऐसे में हो सकता है कि जब यहां प्रचार हो जाये कि अंग्रेजी वाले भी हिंदी में लिखे पाठों को पढ़ रहे है तब हो सकता है कि उनमें रुचि जागे। यहां के लोग विदेशियों की प्रेरणा पर चलते हैं स्वयं का विवेक तो बहुत बाद में उपयोग करते हैं।
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चिराग की रौशनी और उम्मीद-हिंदी शायरी
शाम होते ही
सूरज के डूबने के बाद
काली घटा घिर आयी
चारों तरफ अंधेरे की चादर फैलने लगी थी
मन उदास था बहुत
घर पहुंचते हुए
छोटे चिराग ने दिया
थोड़ी रौशनी देकर दिल को तसल्ली का अहसास
जिंदगी से लड़ने की उम्मीद अब जगने लगी थी
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रिश्तों के कभी नाम नहीं बदलते-हिन्दी ग़ज़ल
दुनियां में रिश्तों के तो बदलते नहीं कभी नाम
ठहराव का समय आता है जब, हो जाते अनाम
कुछ दिल में बसते हैं, पर कभी जुबां पर नहीं आते
उनके गीत गाते हैं, जिनसे निकलता है अपना काम
जो प्यार के होते हैं, उनको कभी गाकर नहीं सुनाते
ख्यालों मे घूमते रहते हैं, वह तो हमेशा सुबह शाम
रूह के रिश्ते हैं, वह भला लफ्जों में कब बयां होते
घी के ‘दीपक’ जलाकर, दिखाने का नहीं होता काम
अपने अंदर ढूंढे, मिलता तभी चैन है-हिंदी शायरी
घर भरा है समंदर की तरह
दुनियां भर की चीजों से
नहीं है घर मे पांव रखने की जगह
फिर भी इंसान बेचैन है
चारों तरफ नाम फैला है
जिस सम्मान को भूखा है हर कोई
उनके कदमों मे पड़ा है
फिर भी इंसान बेचैन है
लोग तरसते हैं पर
उनको तो हजारों सलाम करने वाले
रोज मिल जाते हैं
फिर भी इंसान बेचैन है
दरअसल बाजार में कभी मिलता नहीं
कभी कोई तोहफे में दे सकता नहीं
अपने अंदर ढूंढे तभी मिलता चैन है
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रह जाते बस जख्मों के निशान-हिन्दी शायरी
मोहब्बत में साथ चलते हुए
सफर हो जाते आसान
नहीं होता पांव में पड़े
छालों के दर्द का भान
पर समय भी होता है बलवान
दिल के मचे तूफानों का
कौन पता लगा सकता है
जो वहां रखी हमदर्द की तस्वीर भी
उड़ा ले जाते हैं
खाली पड़ी जगह पर जवाब नहीं होते
जो सवालों को दिये जायें
वहां रह जाते हैं बस जख्मों के निशान
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जब तक प्यार नहीं था
उनसे हम अनजान थे
जो किया तो जाना
वह कई दर्द साथ लेकर आये
जो अब हमारी बने पहचान थे
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