http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
टैग पुरालेख | masti
देश की बढ़ती अमीरी बन रही है बोरियत का कारण-हिन्दी लेख
http://dpkraj.blogspot.com
http://dpkraj.wordpress.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
कार और बैलगाड़ी-हिन्दी शायरियां (kar and bailgadi-hindi shayriyan)
तो कभी शांति शांति का नारा लगाते हैं।
कौन समझाये उनको
बैलगाड़ी युग में लौटकर ही
शांति के साथ हम जी पायेंगे,
वरना कार के धूऐं से
अपनी सांसों के साथ इंसान भी उड जायेंगे,
दिखाते हैं क्रिकेट और फिल्मों के
नायकों के सपने,
जैसे भूल जाये ज़माना दर्द अपने,
नैतिकता का देते उपदेश
लोगों को
पैसे की अंधी दौड़ में भागने के लिये
भौंपू बजाकर उकसाते हैं।
—————–
हर इंसान में
इंसानियात होना जरूरी नहीं होती है,
चमड़ी भले एक जैसी हो
मगर सोच एक होना जरूरी नहीं होती है।
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
सभी को दिखते,
अपनी कलम से पद पाने की हसरत में
हाथ से अपील भी लिखते,
कान आगे बढ़ाकर आदमी की
शिकायत भरी आवाज भी सुनते,
चेहरे पर अपनी अदाओं से
गंभीरता की लकीरें भी बुनते
फिर चढ़ जाते हैं सीढ़ियां
बैठ जाते शिखर पर।
अगली बार नीचे आने तक
वह लाचार हो जाते,
हर हादसे के लिये
अपने मातहत को जिम्मेदार
और खुद को बेबस बताते
अपनी बेबसी यूं ही दिखाते हैं,
लोकतंत्र के यज्ञ में
सेवा का पाखंड
किस कदर है कि
ज़माने की हर परेशानी के हल का
दावा करने वाले
महलों में घुसते ही बनकर राजा
अनुचरों के हाथ, पांव, कान तथा नाक के घेरे में ही
अपना सिंहासन सजाते हैं,
कौम के सपने रह जाते हैं बिखर कर।
—————
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
कुदरत का खेल-हिन्दी शायरी (kudrat ka khel-hindi shayari)
माना कि उनके घर के दरवाजे तंग हैं,
तो भी हम उसमें से हम निकल जाते,
मुश्किल यह है कि उनकी सोच भी
तंग दायरों में कैद है इसलिये वह हमको
कभी प्यार से नहीं बुलाते।
————-
कई बार बहुत लोगों पर यकीन किया हमने
पर हर बार धोखा खाते हैं,
फिर भी नहीं रुकता यह सिलसिला
कुदरत का खेल कौन समझा
धोखा देना एक आदत है इंसान की
बस, समय और चेहरा बदल जाते हैं।
————
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
क्रिकेट का मिक्सर और सिक्सर-हिन्दी व्यंग्य कविताऐं (cricket world cup mixer and sixer-hindi satire poem)
वह जमकर देशभक्ति के जज़्बात जगायें,
भले ही उनके खेल नायक
कभी कभी बॉल तो कभी रन
बेचकर
देश और अपना ईमान दांव लगायें।
सच कहते हैं कि
बाज़ार के सौदागर और उनके भौंपू
चाहे जहां ज़माने को भगायें।
————
क्रिकेट खेल है या मनोरंजन का मिक्सर है,
मैदान पर खिलाड़ी
बाहर के इशारों पर होता आउट
तो कभी लगाता सिक्सर है।
————
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
शैतान मरता नहीं है-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (sahitan marta nahin hai-hindi satire poem)
हर बार लगा कि शैतान के ताबूत में
आखिरी कील ठोक दी गयी है,
फिर भी वह दुनियां में
अपनी हाजिरी रोज दर्ज कराता है,
मुश्किल यह है कि
इंसानों के दिल में ही उसका घर है
भले ही किसी को नज़र नहीं आता है।
———-
बार बार खबर आती है कि
शैतान मर गया है
मगर वह फिर नाम और वेश
बदलकर सामने आता है,
कमबख्त,
कई इंसान उसे पत्थर मारते मारते
मर गये
यह सोचकर कि
उन्होंने अपना फर्ज अदा किया
मगर जिंदा रहा वह उन्हीं के शरीर में
छोड़ गये वह उसे
शैतान दूसरे में चला जाता है।
————
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
दौलत और हादसों का रिश्ता-हिन्दी शायरी (daulat aur hadson ka rishta-hind shayri)
लोग हादसों की खबर पढ़ते और सुनते हैं
लगातार देखते हुए उकता न जायें
इसलिये विज्ञापनों का बीच में होना जरूरी है।
सौदागारों का सामान बिके बाज़ार में
इसलिये उनका भी विज्ञापन होना जरूरी है।
आतंक और अपराधों की खबरों में
एकरसता न आये इसलिये
उनके अलग अलग रंग दिखाना जरूरी है।
आतंक और हादसों का
विज्ञापन से रिश्ता क्यों दिखता है,
कोई कलमकार
एक रंग का आतंक बेकसूर
दूसरे को बेकसूर क्यों लिखता है,
सच है बाज़ार के सौदागर
अब छा गये हैं पूरे संसार में,
उनके खरीद कुछ बुत बैठे हैं
लिखने के लिये पटकथाऐं बार में
कहीं उनके हफ्ते से चल रही बंदूकें
तो कहीं चंदे से अक्लमंद भर रहे संदूके,
इसलिये लगता है कि
दौलत और हादसों में कोई न कोई रिश्ता होना जरूरी है।
———–
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
देशप्रेम और सयाने-हिन्दी व्यंग्य कविता (deshprem aur sayane-hindi vyangya poem)
नहीं जगा पाते अब देशप्रेम
फिल्मों के पुराने घिसे पिटे गाने,
हालत देश की देखकर
मन उदास हो जाता है,
स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस
उठते है मन ही मन ताने।
अपने आज़ाद होने के बारे में सुना
पर कभी नहीं हुआ अहसास,
जीवन संघर्ष में नहीं पाया किसी को पास,
आज़ादह और एकता के नारे
हमेशा सुनने को मिलते रहे,
पर अपनों से ही जंग में पिलते रहे,
अपने को हर पग पर गुलाम जैसा पाया,
अपने हाथ अपने मन से नहीं चलाया,
हमेशा रहे आज़ादी और स्वयं के तंत्र से अनजाने
सब उलझे हैं उलझनों में
जो सुलझे हैं,
वह भी लगे दौलत और शौहरत जुटाने की उधेड़बनों में,
देशप्रेम की बात करते हैं,
पर दिखाते नहीं वही कहलाते सयाने।
——–
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
गरीब की खुशी पर रोते-हिन्दी व्यंग्य कविता (garib ki khushi par rote-hindi vyangya kavita)
अपनी खुशी पर हंसने की बजाय
दूसरे के सुख रोते
इसलिये इंसान कभी फरिश्ते नहीं होते।
मुखौटे लगा लेते हैं खूबसूरत लफ़्जों का
दरअसल काली नीयत लोग छिपा रहे होते।
दौलत के महल में बसने वाले
खुश दिखते हैं,
मगर गरीब की पल भर की खुशी पर वह भी रोते।
सोने के सिंहासन पर विराजमान
उसके छिन जाने के खौफ के साये में
जीते लोग
कभी किसी के वफादार नहीं होते।
———–
कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
आदर्श की बातें-हिन्दी शायरी
गनीमत है इंसान के पांव
सिर्फ जमीन पर चलते हैं,
उस पर भी जिस टुकड़े पर जमें हैं
उसे अपना अपना कहकर
सभी के सीने तनते हैं,
हक के नाम पर हर कोई लड़ने को उतारू है।
अगर कुदरत ने पंख दिये होता तो
आकाश में खड़े होकर हाथों से
एक दूसरे पर आग बरसाते,
जली लाशों पर रोटी पकाते,
आदर्श की बातें जुबान से करते
मगर कोड़ियों में बिकने के लिये तैयार सभी बाजारू हैं।
——–
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
असली और नकली जांबाज-हिन्दी शायरी
मैदान पर लड़ते कम
किनारे पर खड़े दिखाते दम
कागजी जांबाजो के करतब
कभी अंजाम पर नहीं पहुंचे
पर हर पल उनको अपनी आस्तीने
ऊपर करते हमने देखा है।
कीर्तिमान बहुत सुनते हैं उनके
पर कामयाबी के नाम पर खाली लेखा है।
———-
पत्र प्रारूप पर
हाशिए पर नाम लिखवाकर
वह इतराते हैं,
सच तो यह है कि
कारनामे देते अंजाम देते असली जांबाज
हाशिए पर छपे नाम प्रसिद्धि नहीं पाते हैं।
———-
उनको गलत फहमी है कि
किनारे पर चीखते हुए
तैराकों से अधिक नाम कमा लेंगे।
हाशिऐ पर खिताबों से जड़कर नाम
जमाने पर सिक्का जमा लेंगे।
शायद नहीं जानते कि
किनारे पल भर का सहारा है
असली जंग तो दरिया से लड़ते हैं जांबाज
लोगों की नज़रे लग रहती हैं उन पर
कागज के बीच में लिखा मजमून ही
पढ़ते हैं सभी
हाशिए के नाम बेजान बुत की तरह ही जड़े रहेंगे।
———
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
छोटे और बड़े साहब-हिन्दी क्षणिकाएँ (boss culture-hindi comic poem)
वह रोज फूल जाते हैं।
मगर उनके ऊपर भी साहब हैं
जिनकी झिड़की पर वह झूल जाते हैं।
——————–
सभी के सिर पर चढ़ा है।
कामयाबी का खिताब
नीचे से ऊपर जाता साहब की तरफ
नाकामी की लानत का आरोप
ऊपर से उतरकर नीचे खड़ा है,
भले ही सभी जगह साहब हैं
बच जाये दंड से, वही बड़ा है
——–
साहबी संस्कृति में डूबे लोग
आम आदमी का दर्द कब समझेंगे।
जब छोटे साहब से बड़े बनने की सीढ़ी
जिंदगी में पूरी तरह चढ़ लेंगे।
http://zeedipak.blogspot.com
————————-
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
अंतर्जाल पर दूसरे की लोकप्रियता का लाभ उठाने के प्रयास-हिन्दी लेख
संदर्भ के लिये यह दिलचस्प पाठ अवश्य पढ़ें।
http://nilofer73.blogspot.com/2010/02/blog-post.html
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
जब फैशन तनाव बने-हिन्दी आलेख (fashan is tension-hindi article)
अखबार में पढ़ने को मिला कि ब्रिटेन में महिलायें क्रिसमस पर ऊंची ऐड़ी (हाई हील) के जूते पहनने के लिये इंजेक्शन लगवा रही हैं। उससे छह महीने तक ऐड़ी में दर्द नहीं होता-भारतीय महिलायें इस बात पर ध्यान दें कि अंग्रेजी दवाओं के कुछ बुरे प्रभाव ( साईड इफेक्ट्स) भी होते हैं। हम तो समझते थे कि केवल भारत की औरतें ही ऊंची ऐड़ी (हाई हील) के जूते पहनकर ही दर्द झेलती हैं अब पता लगा कि यह फैशन भी वहीं से आयातित है जहां से देश की शिक्षा पद्धति आई है।
एक बार हम एक अन्य दंपत्ति के साथ एक शादी में गये। उस समय हमारे पास स्कूटर नहीं था सो टैम्पो से गये। कुछ देर पैदल चलना पड़ा। वह दंपति भी चल तो रहे थे पर महिला बहुत परेशान हो रही थी। उसने हाई हील की चप्पल पहन रखी थी।
बार बार कहती कि ‘इतनी दूर है। रात का समय आटो वाला मिल जाता तो अच्छा रहता। मैं तो थक रही हूं।’
हमारी श्रीमती जी भी ऊंची ऐड़ी (हाई हील) पहने थी पर वह अधिक ऊंची नहीं थी। उन्होंने उस महिला से कहा कि-‘यह बहुत ऊंची ऐड़ी (हाई हील) वाले जूते या चप्पल पहनने पर होता है। इसलिये मैं कम ऊंची ऐड़ी (हाई हील) वाली पहनती हूं।’
वह बोली-‘नहीं, ऊंची ऐड़ी (हाई हील) से से कोई फर्क नहीं पड़ता।’
बहरहाल उस शादी के दौरान ही उनकी चप्पल की एड़ी निकल गयी। अब यह तो ऐसा संकट आ गया जिसका निदान नहीं था। अगर चप्पल सामान्य ढंग के होती तो घसीटकर चलाई जा सकती थी पर यह तो ऊंची ऐड़ी (हाई हील) वाली थी। अब वह उसके पति महाशय हमसे बोले-‘यार, जल्दी चलो। अब तो टैम्पो तक आटो से चलना पड़ेगा।’
हमने हामी भर दी। संयोगवश एक दिन हम एक दिन जूते की दुकान पर गये वहां से वहां उसने हमें ऊंची ऐड़ी (हाई हील) के जूते दिखाये पर हमने मना कर दिया क्योंकि हमें स्वयं भी यह आभास हो गया था कि जब ऊंची ऐड़ी (हाई हील) के जूते टूटते हैं तो क्या हाल होता है? उनको देखकर ही हमें अपनी ऐड़ियों में दर्द होता लगा।
हमारे रिश्ते की एक शिक्षा जगत से जुड़ी महिला हैं जो ऊंची ऐड़ी (हाई हील) के जूतों की बहुत आलोचक हैं। अनेक बार शादी विवाह में जब वह किसी महिला ऊंची ऐड़ी (हाई हील) की चप्पल पहने देखती हैं तो कहती हैं कि -‘तारीफ करना चाहिये इन महिलाओं की इतनी ऊंची ऐड़ी (हाई हील) की चप्पल पहनकर चलती हैं। हमें तो बहुत दर्द होता है। इनके लिये भी कोई पुरस्कार होना चाहिए।’
एक दिन ऐसे ही वार्तालाप में अन्य बुजुर्ग महिला ने उनसे कहा कि-‘ अरे भई, आज समय बदल गया है। हम तो पैदल घूमते थे पर आजकल की लड़कियों को तो मोटर साइकिल और कार में ही घूमना पड़ता है इसलिये ऊंची ऐड़ी (हाई हील) की चप्पल पहनने का दर्द पता ही नहीं लगता। जो बहुत पैदल घूमेंगी वह कभी ऊंची ऐड़ी (हाई हील) की चप्पल नहीं पहन सकती।’
उनकी यह बात कुछ जमी। ऊंची ऐड़ी (हाई हील) के जूते का फैशन परिवहन के आधुनिक साधनों की वजह से बढ़ रहा है। जो पैदल अधिक चलते हैं उनके िलये यह संभव नहीं है कि ऊंची ऐड़ी (हाई हील) के जूते पहने।
वैसे भी हमारे देश में जो सड़कों के हाल देखने, सुनने और पड़ने को मिलते हैं उसमें ऊंची ऐड़ी (हाई हील) की चप्पल और जूता पहनकर क्या चला जा सकता है? अरे, सामान्य ऐड़ी वाली चप्पलों से चलना मुश्किल होता है तो फिर ऊंची ऐड़ी (हाई हील) से खतरा ही बढ़ेगा। बहरहाल फैशन तो फैशन है उस पर हमारा देश के लोग चलने का आदी है। चाहे भले ही कितनी भी तकलीफ हो। हमासरे देश का आदमी अपने हिसाब से फैशन में बदलाव करेगा पर उसका अनुसरण करने से नहीं चूकेगा।
दहेज हमारे यहां फैशन है-कुछ लोग इसे संस्कार भी मान सकते हैं। आज से सौ बरस पहले पता नहीं दहेज में कौनसी शय दी जाती होगी- पीतल की थाली, मिट्टी का मटका, एक खाट, रजाई हाथ से झलने वाला पंख और धोती वगैरह ही न! उसके बाद क्या फैशन आया-बुनाई वाला पलंग, कपड़े सिलने की मशीन और स्टील के बर्तन वगैरह। कहीं साइकिल भी रही होगी पर हमारी नजर में नहीं आयी। अब जाकर कहीं भी देखिये-वाशिंग मशीन, टीवी, पंखा,कूलर,फोम के गद्दे,फ्रिज और मोटर साइकिल या कार अवश्य दहेज के सामान में सजी मिलती है। कहने का मतलब है कि घर का रूप बदल गया। शयें बदल गयी पर दहेज का फैशन नहीं गया। अरे, वह तो रीति है न! उसे नहीं बदलेंगे। जहां माल मिलने का मामला हो वहां अपने देश का आदमी संस्कार और धर्म की बात बहुत जल्दी करने लगता है।
हमारे एक बुजुर्ग थे जिनका चार वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया। उनकी पोती की शादी की बात कहीं चल रही थी। मध्यस्थ ने उससे कहा कि ‘लड़के के बाप ने दहेज में कार मांगी है।’
वह बुजुर्ग एकदम भड़क उठे-‘अरे, क्या उसके बाप को भी दहेज में कार मिली थी? जो अपने लड़के की शादी में मांग रहा है!
बेटे ने बाप को समझाकर शांत किया। आखिर में वह कार देनी ही पड़ी। कहने का तात्पर्य यह है कि बाप दादों के संस्कार पर हमारा समाज इतराता बहुत है पर फैशन की आड़ लेने में भी नहीं चूकता। नतीजा यह है कि सारे कर्मकांड ही व्यापार हो गये हैं। शादी विवाह में जाने पर ऐसा लगता है कि जैसे खाली औपचारिकता निभाने जा रहे हैं।
बहरहाल अभी तक भारतीय महिलाओं को यह पता नहीं था कि कोई इंजेक्शन लगने पर छह महीने तक ऐड़ी में दर्द नहीं होता वरना उसका भी फैशन यहां अब तक शुरु हो गया होता। अब जब अखबारों में छप गया है तो यह आगे फैशन आयेगा। जब लोगों ने फैशन के नाम पर अपने शादी जैसे पवित्र संस्कारों को महत्व कम किया है तो वह अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ से भी बाज नहीं आयेंगे। औरते क्या आदमी भी यही इंजेक्शन लगवाकर ऊंची ऐड़ी (हाई हील) के जूते पहनेंगे। कभी कभी तो लगता है कि यह देश धर्म से अधिक फैशन पर चलता है।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका